मूर्ख बंदर कि कहानी

ठंडी और खामोश रात थी। मौसम में ठण्ड थी। एक पेड़ पर बंदरों का एक समूह था। वे इसकी शाखाओं से चिपके हुए थे। बंदरों में से एक ने कहा, “काश हम कुछ आग पा सकते। यह हमें गर्म रखने में मदद करेगा।

अचानक उन्हें फायरफ्लाइज का झुंड दिखाई दिया। युवा बंदरों में से एक ने सोचा कि यह आग थी। उसने एक जुगनू पकड़ा। उसने एक सूखे पत्ते के नीचे रख दिया और उस पर उड़ने लगा। उनके प्रयासों में कुछ अन्य बंदर भी शामिल हुए।

इस बीच, एक गौरैया अपने घोंसले के लिए उड़ान भरती हुई आई, जिस पेड़ पर बंदर बैठे थे। उसने देखा कि वे क्या कर रहे थे। गौरैया हँस पड़ी। उसने कहा, “अरे मूर्ख बंदर जो जुगनू हैं, असली आग नहीं। मुझे लगता है कि आप सभी को एक गुफा में शरण लेनी चाहिए। ”

बंदरों ने गौरैया की बात नहीं मानी। वे बेचारे जुगनू को उड़ाते रहे। कुछ समय बाद, बंदर बहुत थक गए। अब उन्हें एहसास हुआ कि गौरैया ने जो कहा था वह सही था। उन्होंने जुगनू को आज़ाद कर दिया और पास की एक गुफा में चले गए।

मोरल ऑफ़ द स्टोरी: दृढ़ता एक अच्छे छात्र के सबसे अधिक परिभाषित गुणों में से एक है, वहाँ हमेशा कुछ नया सीखा जाता है! इस कहानी में बंदरों ने फिजूल के मेहनत में खुद को थकाया क्योंकि वे शुरू में काम कि बाते सुनने से इनकार कर दिया था। हमेशा अपने बड़ों की सुनें, बेहतर सलाह को को जरूर सुने!

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